जन्म जब तुम्हारा होता हैं
एक ख्वाब साथ मे रोता है
हम साथ मे खाना खाते है
स्कूल भी साथ ही जाते है
ये वक्त निराला होता है
जब बेइंतहा ख्वाबों को चाहते है
जब बचपन फीका पड़ता है
जवानी माथे चढ़ती है
जिम्मेदारी हाथ लगती है
तब.........
ख्वाब कही खो जाते है
सपने तुम्हारे सो जाते है
फिर........
घरवाले पीछे पड़ जाते है
तो हम भी दौड़ में लग जाते है
सरकारें खूब नचाती है
वेकैंसी को साल दर साल घुमाती है
देश के युवाओं को खूब सताती है
आखिरकार..........
हम एक नौकरी कही से पाते है
धीरे धीरे उसी मे जुट जाते है
शादी ब्याह करके गृहस्ती मे घुस जाते है
और, गृहस्ती तो ऐसा जाल है
जहा से कभी नही निकल पाते है
फिर एक दिन......
बुढ़ापे से मिलते है
अधुरे सपनों के साथ चिता पर जलते है
अफसोस की पोटली को लेकर हम इस दुनिया से निकलते है
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